नेताजी
रुक सी गई है जिंदगी
थम सा गया है शहर
सुबह बीत चुकी है
हो गया है दोपहर
लोगों का हुजूम उस ओर है जा रहा
जहाँ सपनों के सौदागर आयेंगे
पांच साल पहले जो बात कही
उसी को फिर दोहराएंगे
खूब होगी बात सड़क की
बिजली की और पानी की
धरातल पर जो दिखा नहीं
उस अदृश्य कामो के कहानी की
तालियां भी खूब बजेगी
पता नही किस बात से
उड़न खाटोले पर जो आया
खेलेगा हमारी ज़ज्बात से
हम समझ भी नहीं सके
वो अपना काम कर गया
अब फिर पांच साल बाद दिखेगा
तब तक के लिए मर गया
हम यू ही रहे दीन और हीन
वे ऐशो-आराम से रहते हैं
हम तो बेवक़ूफ़ जनता है
उन्हें नेताजी कहते हैं
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