प्रतिज्ञा
सागर में मोती बहुत है
उतारने की हिम्मत जुटाओ
यूं कब तक किनारे बैठे रहोगे
आओ तुम भी मेरे संग आओ
मैं भी कभी था मुंह तका
पर अब गया जिंदगी को जान
तुम भी यूं ना समय गवा
अपने होने का कारण पहचान
साथ साथ चलना है हमको
आओ हम यह मिलकर ठाने
फिर क्या पर्वत और क्या सागर
इसे चुनौती हम क्यों माने
हम जीतेंगे हर मुसीबत
साथ यूं ही चलते रहे
दुनिया की क्यों परवाह करे
वह कहता है तो कहते रहे
लोग तुम्हें बहुत कुछ कहेंगे
इसमें बोलो क्या है नया
लेकिन हमको ये पता हो
गलत है क्या और सही है क्या
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