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ज़िन्दगी

 जिंदगी की राह में  खुशी खुशी चलते हुए  अचानक लगे हम रोने धोने  जैसे टूट गया हो खेल खिलौने  वक़्त ने फिर मुझे समझाया  ज़ख्मों पर मरहम लगाया  बोला मुझको क्यों तुम रोया  क्या था तेरा जो तुम खोया  सबकुछ तुम है यहीं पर पाया  होगा सबकुछ छोड़ कर जाना  मत फंस तू इस मोह माया में  ग़म न कर झूठी काया का  मौत सत्य है इस धरा का  जितनी जल्दी हो पहचान लो  सबका अंत एक ही होगा  जान लो और मान लो 

नेताजी

 रुक सी गई है जिंदगी  थम सा गया है शहर  सुबह बीत चुकी है  हो गया है दोपहर  लोगों का हुजूम उस ओर है जा रहा  जहाँ सपनों के सौदागर आयेंगे  पांच साल पहले जो बात कही   उसी को  फिर दोहराएंगे  खूब होगी बात सड़क की   बिजली की और पानी की धरातल पर जो  दिखा नहीं  उस अदृश्य कामो के कहानी की  तालियां भी खूब बजेगी पता नही किस बात से  उड़न खाटोले पर जो आया  खेलेगा हमारी ज़ज्बात से हम समझ भी नहीं सके  वो अपना काम कर गया  अब फिर पांच साल बाद दिखेगा  तब तक के लिए मर  गया  हम यू ही रहे दीन और हीन  वे ऐशो-आराम से रहते हैं  हम तो बेवक़ूफ़ जनता है  उन्हें नेताजी कहते हैं 

लो मीडिल क्लास

 न तो मेरे पास कार है  और न ही मैं बेकार हूँ  सरकारी नौकरी है   तनख्वाह का सहारा है  परिवार के सभी सदस्य  मुझे प्राणों से प्यारा है  सरस्वती की आस है  लक्ष्मी लाने का प्रयास है  सरकारी योजनाओं का  कोई भी औचित्य नहीं  क्योंकि न तो मैं अमीर हूँ  और न ही मैं गरीब हूँ  तनख्वाह में  उतने नग कहा  खर्चों की जितनी बड़ी सूची है  महगाई से अपना याराना है  हर रोज़ दरवाजा खरका जाता  तुम लो मिडिल क्लास लोग है   ये कान में बता जाता  ख़्वाहिश समेट अपनी  तेरी चादर छोटी है  इसी क्लास के दम पर ही  सरकार गहरी नींद सोती है  देश के विकास में  ये क्लास बड़ी खास है  और सबसे बड़ी बात कि इसे पता है  कि ये लो मिडिल क्लास है  कोई कुछ भी सोचे  इसने वसूल नहीं गंवाया है  धन भले न कमाया हो  संस्कार जरूर कमाया है  वाह रे लो मिडिल क्लास  तेरी भी बड़ी माया है -2

तन्हाई का आलम कैसा

 तन्हाई का आलम कैसा  तन्हाई संग हम खेलेंगे  धीरे-धीरे लोग मिलेंगे  धीरे-धीरे सजेगी महफ़िल  दिल वाले भी आयेंगे  दिल जले भी आयेंगे  आपस में होगी मुलाकातें  दिल से होगी दिल की बातें  किसी के किस्से में गम होगा  कहीं पे ज्यादा कहीं कम होगा  कोई अपनी कथा बताए  कोई अपनी व्यथा बताए  कोई होगा प्यार का मारा  किसी को होगा गम बहुत सारा  फिर खुलेगी बोतल रम की  छु मन्तर हो जाए गम की  जीवन में अजीब मजा छाए  जीने का फिर मजा आए 

मिथिला धाम

 Hamar gam mithla dham Hum mithla ke vasi yau Kiya jebai desh videsh hum Yeh mathura aur kashi yau Janki jatay janam lelaith E o pawan dharti yau Ram jakhan van vida bhaelath O duvidha me ki karti yau Ek taraf chhai rajpat aur Ek taraf vanvasi yau Kiya .......... Hamra nai ai bad abhilasha Maithili hamar ati madhur bhasha Vidyapati kavi mithla ke Hum saraswati ke upwasi yau Kiya.......

देहाती

 कल दिखा मुझे एक देहाती  शहर की भाषा उसे नहीं आती  पर थे उसके मीठे बोल  मन में देता मिश्री घोल  छल कपट से दूर था वो  दिखता ज़रा मज़बूर था वो  श्याम वर्ण और दुबली काया  धोती कुर्ता तन पे पाया  सुनी आंखे सागर सा गहरा  जीवन में जैसे दुखों का पहरा  पूछ बैठा मैं तू कहा से आया  क्या शहरी  जीवन नहीं तुझे भाया  बोल पड़ा मैं कल ही आया  दो चार जोड़ कुछ पैसे लाया  सोचा शहर में कुछ काम करूंगा  और थोड़ा आराम करूंगा  अपने भी फिर दिन फिरेगे लोग हमारी भी इज्जत करेंगे  पर क्या पता था शहर नहीं है  हम जैसे गांववालों की  यहां प्यार नहीं है ना अपनापन  सब पैसे मोल बिकते है  इससे अच्छा तो गाँव है अपना  क्यों पाला मैं शहर का सपना  आज ही मैं वापस जाऊँगा  और फिर कभी नहीं शहर आऊंगा 

शख्सीयत

वक्त के धरातल पर  रखे कदम हम कुछ ऐसे  कि लोग कह उठे बिल्कुल नहीं बदला वैसा ही है पहले  था जैसे  परिस्थितियों के थपेड़े  इसको नहीं डिगा सके  सच कहते हैं लोग सब  शख्सियत में अगर दम हो  तो फिर कौन है जो उसे मिटा सके  माना होगी तकलीफें बहुत  इस दुनिया में तुझे जीने में  समुद्र मंथन करना पड़ेगा  इच्छा अगर  हो अमृत पीने में