अपना गाँव
कैसे भूलूं रोना धोना कैसे भूलूं खेल खिलौना कैसे भूलूं नदियां का पानी कैसे भूलूं नानी की कहानी कैसे भूलूं मिट्टी का घर सुख की खोज में गया शहर सुख मिली नहीं कहीं पर शान्ति पेट के लिए दिन रात क्रांति इससे अच्छा तो गाँव था अपना क्यों नहीं माना अम्मा का कहना बोली तो थी मत जा परदेश क्या नहीं है आपने देश मिट्टी के घर शीतल बरसता खेतों में सोना उगलता आपस में है भाई चारा एक दूजे को है सब प्यारा साँझ पहर चौपालें लगती बड़े बूढे की टोली सजती हर मुद्दे पर बातेँ होती मुद्दो की तह खोली जाती चाहे बात हो राजनीति की चाहे सत्ता के गणित की सबका जवाब गाँव में भाई न जाओ कोई देश पराई